सौर मण्डल क्या है:- रात में जब हम छत या किसी खुले स्थान से आकाश की ओर देखते हैं तो हमें अनेक चमकती हुई आकृतियाँ दिखाई देती हैं। इनमें चन्द्रमा एवं तारे शामिल होते हैं। नगरों के तेज प्रकाश एवं प्रदूषण युक्त आसमान से दूर जाने पर ये आकृतियाँ अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट दिखाई देती हैं। आपने सोचा तो होगा कि ये सब क्या है ? इन्हें क्या कहते हैं ? पृथ्वी से आकाश में दिखाई देने वाली ये सभी आकृतियों, आकाशीय पिण्ड या खगोलीय पिण्ड (Celestial Bodies) कहलाते हैं। इनमें सूर्य, चन्द्रमा तारे आदि शामिल हैं।

सूर्य, आठ ग्रह. इन ग्रहों के उपग्रह तथा कुछ अन्य खगोलीय पिण्ड जैसे क्षुद्र-ग्रह, पुच्छल-तारा एवं उल्कापिण्ड मिलकर सौरमण्डल का निर्माण करते हैं। इसे हम सौर परिवार भी कहते हैं, क्योंकि सौर परिवार का मुखिया सूर्य है। यह हमारे सौर मण्डल के केन्द्र में स्थित है। सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल (खिचाव) के प्रभाव के कारण सौर परिवार के अन्य सभी सदस्य सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते रहते हैं।

सौरमण्डल के 8 ग्रहों की तुलनात्मक तालिका

क्र. सं.सौरमंडल के ग्रहों के नामग्रह का रंगसूर्य से दूरी (करोड़ किमी में)ग्रह का व्यास (किमी में)अक्ष पर चक्कर लगाने का समयसूर्य की परिक्रमा का समयउपग्रहों की संख्या
1.बुधभूरा5.84,87858.6 दिन88 दिनशून्य
2.शुक्रहल्का पीला10.812,104243 दिन225 दिनशून्य
3.पृथ्वीनीला-हरा14.9612,75624 घंटे385.26 दिन1 (चन्द्रमा)
4.मंगललाल-भूरा21.76,75024 घंटे 37मि०687 दिन2
5.बृहस्पतिगुलाबी रंग पर सफेद पट्टी77.81,42,9849 घंटे 55 मि.11:86 वर्ष69
6.शनिसुनहरा-पीला142.71,20,53610 घंटे 47 मि०29.46 वर्ष62
7.यूरेनसआसमानी28.751,11817 घंटे 14 मि०84 वर्ष27
8.नेपच्यूनगहरा आसमानी449.74952816 घंटे164.8 वर्ष14

सौर मण्डल क्या है (Sour Mandal Kya Hai)

नोट- शनि एवं यूरनेस ग्रह के चारों और विशेष प्रकार की वलय (Ring) पाई जाती है।

सूर्य (Sun)

सूर्य सौरमण्डल के केन्द्र में स्थित, अत्यधिक गर्म गैसों से बना तारा है। इसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसें पाई जाती हैं। यह बहुत बड़ा है, हमारी पृथ्वी जैसे लगभग तेरह लाख गोले इसमें समा सकते हैं। यह समूचे सौरमण्डल को ऊष्मा एवं प्रकाश प्रदान करता है। सूर्य हमारी पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किमी दूर स्थित है। तीन लाख किमी प्रति सेकेण्ड की चाल से सूर्य का प्रकाश 8 मिनट 19 सेकेण्ड में सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचता है।

ग्रह (PLANET)

जो आकाशीय पिण्ड अपने तारे के चारों ओर निर्धारित कक्षा में चक्कर लगाते हैं। उन्हें ग्रह कहते हैं। इनमें स्वयं का प्रकाश व ऊष्मा नहीं होती है। ये अपने तारे के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं। जैसे हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। किसी आकाशीय पिण्ड के ग्रह होने के लिए उनका आकार इतना बड़ा होना चाहिए कि गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से इनकी आकृति गोल या लगभग गोल हो तथा ये किसी अन्य ग्रह की कक्षा को न काढते हों।

हमारे सौरमण्डल में आठ ग्रह हैं। सूर्य से बढ़ती दूरी के अनुसार इनका क्रम है बुध (Mercury). शुक्र (Venus), पृथ्वी (Earth). मंगल (Mars). बृहस्पति (Jupiter) शनि (Saturn) यूरेनस (Uranus) और नेपच्यून (Neptune) सौरमण्डल के सभी आठ ग्रह अपनी धुरी पर लट्टू की भाँति घूमते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। ये घड़ी की सूई की विपरीत दिशा (Anticlockwise) में अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इन ग्रहों का अपनी धुरी पर घूमना परिभ्रमण (Rotation) एवं सूर्य के चारों ओर घूमना परिक्रमण (Revolution) कहलाता है।

पृथ्वी (Earth)

सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी तीसरा ग्रह है। आकार में यह पाँचवों सबसे बड़ा ग्रह है। हमारी पृथ्वी लगभग गोल आकार की है. यह ध्रुवो पर थोडी चपटी तथा मध्य में थोड़ी उभरी हुई है। इसलिए इसके आकार को भूआभ (Geold) कहा जाता है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ, सम्भवतः केवल पृथ्वी पर पाई जाती हैं। इसलिए इसे हरित ग्रह (Green Planet) भी कहा जाता है। पृथ्वी पर जल की अधिकता के कारण यह अन्तरिक्ष से देखने पर नीले रंग की दिखाई देती है। इसलिए इसे नीला ग्रह (Blue Planet) भी कहते हैं।

इसे भी जानें – खगोलविदों के अनुसार कई तारों के पास हमारे सौरमण्डल की भांति ग्रहों, उपग्रहों आदि आकाशीय पिण्डों से बना सुव्यवस्थित तंत्र हो सकता है।

उपग्रह (Satellite)

कुछ आकाशीय पिण्ड अपने ग्रह की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं। अपने ग्रह की परिक्रमा करने के कारण इन्हें उपग्रह कहते हैं। जैसे चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। यह पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।

चन्द्रमा (Moon)

हमारी पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है। इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई है। यह हमारी पृथ्वी के सर्वाधिक निकट स्थित आकाशीय पिण्ड है। पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग तीन लाख चौरासी हजार किलोमीटर है। यह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है। चन्द्रमा के इस प्रकाश को चाँदनी (Moon light) कहते हैं पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने के कारण यह रात्रि के आकाश में सबसे बड़ा और चमकीला दिखाई देता है।

इन्हें भी जानें – शुक्र एवं यूरेनस को छोड़कर सभी ग्रह घड़ी की सूई के विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं। इन दोनों ग्रहों की परिभ्रमण की दिशा घड़ी की सूई की दिशा (Clockwise) में होती है। यूरेनस के उपग्रह भी उसके चारों ओर घड़ी की सूई की दिशा में परिक्रमा करते हैं।

क्षुद्र ग्रह (Asteroides)

मंगल एवं बृहस्पति की कक्षाओं के बीच असंख्य छोटे-छोटे पिण्ड पाये जाते हैं। ये भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इन्हें क्षुद्रग्रह कहते हैं। खगोलविदों के अनुसार क्षुद्रग्रह, ग्रहों के टुकड़े हैं जो करोड़ों वर्ष पहले विस्फोट से बिखर गए थे।

उल्का पिण्ड (Meteorolds)

सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने वाले पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों को ‘उल्का पिण्ड’ कहते हैं। ये कभी-कभी पृथ्वी के इतने निकट आ जाते हैं कि पृथ्वी के वायुमण्डल के साथ रगड़कर जलने लगते हैं. और जलकर पृथ्वी पर गिर जाते हैं। इस प्रक्रिया में धमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है। इन्हें ही टूटता हुआ तारा कहा जाता है।

पुच्छल तारे (Comets)

पुच्छल तारे अथवा धूमकेतु चट्टानों, बर्फ, धूल और गैस के बने आकाशीय पिण्ड होते हैं। अक्सर ये आकाशीय पिण्ड अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य के पास आ जाते हैं। सूर्य के ताप पृथ्वी के कारण इसकी गैसें धूल और बर्फ, वाष्प में बदल जाती हैं। यही वाष्प मुख्य पिण्ड से एक लम्बी सी चमकीली पूँछ के रूप में बाहर निकल जाती है। गुरुत्वाकर्षण के कारण इस तारे का सिर सूर्य की तरफ तथा पूँछ हमेशा ही बाहर की तरफ होती है, जो हमें चमकती दिखाई देती है।

कुइपर मेखला (Kulper- Bolt)

यह नेपच्यून के पार सौरमण्डल के आखिरी सिरों पर एक तश्तरी (Disc) के आकार की विशाल पट्टी है। इसमें असंख्य खगोलीय पिण्ड उपस्थित हैं जिनमें कई बर्फ से बने हैं। धूमकेतु इसी क्षेत्र से आते हैं। खगोलविदों का अनुमान है कि यहाँ ग्रह जैसे कई बड़े आकाशीय पिण्ड भी हो सकते हैं। प्लूटो भी इसी मेखला में स्थित है।

इसे भी जाने – हमारे सौरमण्डल में अगस्त 2006 के पहले 9 ग्रह माने जाते थे। यम (प्लूटो) नौवाँ ग्रह था। यह नेपच्यून की कक्षा का अतिक्रमण करता था। अतः 24 अगस्त 2006 को अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (आई०ए०यू०) ने यम को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया।

ब्रह्माण्ड (Universe)

आपने तारों भरे खुले आकाश में एक और से दूसरी ओर तक फैली चौड़ी सफेद पट्टी की तरह चमकदार पथ (मार्ग) को देखा है। यह करोड़ों तारों का समूह है। इस पट्टी को आकाशगंगा (Galaxy) कहते हैं। हमारी आकाशगंगा का नाम मंदाकिनी है। जो भाग पृथ्वी से दिखाई देता है, उसे मिल्की वे कहते हैं।

इसका आकार सर्पिलाकार तश्तरी (Spiral Disc) जैसा है। इसमें लगभग एक अरब तारे हैं। हमारा सौरमण्डल (सौर मण्डल क्या है) इसी आकाशगंगा का एक भाग है। इस प्रकार की करोड़ों आकाशगंगाएँ मिलकर हमारे ब्रह्माण्ड का निर्माण करती हैं। क्या आपने विचार किया है कि हमारे ब्रह्माण्ड में आकाशगंगा, सूर्य, पृथ्वी आदि आकाशीय पिण्डों की उत्पत्ति कैसे हुई ? आइए जानें –

इसे भी जानें

  • प्रकाश वर्ष (Light year)- यह दूरी मापने की इकाई है। प्रकाश द्वारा अंतरिक्ष में एक वर्ष में चली गई दूरी प्रकाश वर्ष कहलाती है। इसकी माप लगभग 946 खरब ( 9:46 ट्रिलियन) किलो मीटर होती है। तारों के मध्य दूरी, आकाशगंगा का आकार, आकाशगंगाओं के मध्य दूरी आदि दूरियाँ मापने में इसका प्रयोग करते हैं।
  • हमारी आकाशगंगा इतनी विशाल है कि प्रकाश की गति से चलने पर इसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने में एक लाख वर्ष लगेंगे।

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति-बिग बैंग

आज से लगभग 13 अरब वर्ष पहले पूरा का पूरा ब्रह्माण्ड एक गर्म और सघन छोटे से गोले के रूप में था। अधिक गर्मी और सघनता के कारण इसमें अचानक विस्फोट हुआ। इस विस्फोट को बिग बैंग कहा जाता है। विस्फोट के बाद ब्रह्माण्ड तेजी से फैलने लगा। यह फैलाव आज जारी है।

बिग बैंग की घटना के कुछ करोड़ वर्ष के बाद तारों और आकाशगंगाओं का निर्माण होने लगा। वास्तव में आकाशगंगा का निर्माण हाइड्रोजन, हीलियम गैसों तथा धूलकणों से बने विशाल बादल से हुआ है। आकाशगंगा को बनाने वाले इन बादलों को निहारिका (Nebula) कहते हैं।

गुरुत्वाकर्षण के इकट्ठा होने प्रभाव के कारण इन बादलों से गैसीय पिण्ड बने, जिससे तारों का निर्माण प्रारम्भ हुआ। आकाशगंगा के केन्द्र सबसे दूर स्थित मंदाकिनी से बले प्रकाश को हमारी पृथ्वी तक पहुंचने में 1000 करोड़ वर्ष लग जाएँगे। प्रकाश को आकाशगंगा के एक छोर से दूसर छोर तक पहुँचने में 1 लाख वर्ष लगेंगे।

प्रकाश 3,00,000 किमी प्रति सेकेण्ड की गति से चलता है फिर भी सौर मण्डल सौर मण्डल पार करने में 24 घण्टे लगते हैं। में एक विशाल ब्लैक होल है, जो गुरुत्व केन्द्र का कार्य करता है। इसके कारण आकाशगंगा का स्थायित्व बना रहता है।

हमारा सूर्य अपनी आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारों में से एक तारा है। आज से लगभग 5 अरब वर्ष पूर्व मंदाकिनी आकाशगंगा की बाहरी भुजा में हमारे तारे (सूर्य) का जन्म हुआ। सूर्य अपने जन्म से ही आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा कर रहा है। वर्तमान में यह आकाशगंगा की बीच की भुजा में स्थित है।

सूर्य की उत्पत्ति के कुछ समय बाद उसके चारों ओर छोटे-छोटे आकाशीय पिण्डों और गैसीय बादलों का संचयन होने लगा। इस संचयन के परिणामस्वरूप ग्रहों, उपग्रहों, क्षुद्रग्रहों पुच्छल तारों आदि का निर्माण होने लगा। इस प्रकार धीरे-धीरे हमारा सौरमण्डल अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया।

ब्लैक होल (Black Hole)

ब्लैक होल एक ऐसा आकाशीय पिण्ड है, जिसका बहुत अधिक भार अथवा द्रव्यमान अत्यन्त सीमित स्थान पर एकत्र रहता है अर्थात इसका घनत्व बहुत अधिक होता है। इस कारण ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल इतना शक्तिशाली होता है कि कुछ भी इसके खिचाव (आकर्षण) से बच नहीं सकता।

यहाँ तक कि यह अपने ऊपर पहने वाले प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है अर्थात इसमें जाने वाला प्रकाश भी इसके बाहर नहीं आ पाता है। इसलिए यह दिखाई भी नहीं देता। इसके स्थान पर केवल काला रंग ही दिखाई देता है। इसीलिए इसे कृष्ण विवर या ब्लैक होल कहा जाता है। सौर मण्डल क्या है

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